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नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो बोध और कृष्न का जा-नशीं हमा-तन अमल हमा-तन यक़ीं
वो तबस्सुम-ए-सहर-आफ़रीं कि चमन लबों से खिला दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मता-ए-सब्र वहशत-ए-दुआ की नज़्र हो गई
उमीद-ए-अज्र बे-यक़ीनी-ए-जज़ा की नज़्र हो गई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मुझे इक़रार है ये ख़ेमा-ए-अफ़्लाक का साया
उसी की बख़्शिशें हैं उस ने सूरज चाँद तारों को
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ख़िर्मन-ए-सब्र-ओ-सुकूँ ख़ाक न हो क्यों जल कर
बिजलियाँ कौंद रही हैं मिरे काशाने में