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नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम पे मुश्तरका हैं एहसान ग़म-ए-उल्फ़त के
इतने एहसान कि गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तू ने इक दिल को मिरे दर्स-ए-मोहब्बत न दिया
और फिर जान के दाग़-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त न दिया