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नज़्म
खुली फ़ज़ा की धूप वो कि जिस्म साँवले करे
बुतान-ए-आज़री कि मस्त-ए-ग़ुस्ल-ए-आफ़्ताब थे
अहमद फ़राज़
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अजब क्या है कि अब हर शाह-राह से ये सदा आए
मुझे भी कम से कम इक ग़ुस्ल-ख़ाने की ज़रूरत है
शिबली नोमानी
नज़्म
खालिद इरफ़ान
नज़्म
मीराजी
नज़्म
आज का दिन है ख़ुशी का ईद जिस का नाम है
ग़ुस्ल कर के आज पहने हम ने वो कपड़े नए
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
वो तो ग़ुस्ल-ए-आख़िरी ले कर हुए फिर ताज़गी से आश्ना
निथरे सुथरे ओढ़ कर अपनी सफ़ेदी के कफ़न
ग़ालिब अहमद
नज़्म
किस तरफ़ जाऊँ कहाँ धोऊँ मैं अपना दामन
मेरे मक़्तूल मिरे साथ हैं बे-ग़ुस्ल-ओ-कफ़्न