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नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो इस आलम में चलना है तुझे हुक्म-ए-अइद्दू पर
तो इस्तेदाद-ए-दफ़ा-ए-हमला-ए-अग़्यार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
वो अपने ज़ोम में लिबरल हैं या रीडीकल हैं
मगर हैं क़ौम के हक़ में ब-सूरत-ए-अग़्यार
इस्माइल मेरठी
नज़्म
इस भीड़ में गुंजाइश-ए-अल्फ़ाज़ कहाँ थी
अल्फ़ाज़ भी होंटों से निकलते थे ब-दिक़्क़त
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
मेरे महबूब वतन तेरे मुक़द्दर के ख़ुदा
दस्त-ए-अग़्यार में क़िस्मत की इनाँ छोड़ गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़िदमत-ए-अग़्यार से फ़ुर्सत कोई पाता नहीं
सच है अपनों पर ग़ुलामों को तरस आता नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फूल बरसाता है अपने दोस्तों की बज़्म में
और गिराता है सफ़-ए-अग़्यार पर ये बिजलियाँ