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नज़्म
दुख़तरन-ए-मग़रिबी को दे न औरत का ख़िताब
ये मुजस्सम हो गए हैं कुछ गुनहगारों के ख़्वाब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़िक्र-ए-गुनहगारी का ताज़ा दिल-रुबा पैग़ाम था
तेरे ही कूचे में ये सब अहद-ए-वफ़ा तोड़े गए
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
पसंद आया जो टूटे दिलों का इज़्ज़-ओ-नियाज़
तो बस गया है ख़ुदा भी गुनहगारों में
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न रोग हूँ मैं कि इस की तारीकियों में ख़िफ़्फ़त से डूब जाऊँ
न मैं गुनाहगार हूँ न मुजरिम
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
रक़्स-ए-मीना से उठे नग़्मा-ए-रक़्स-ए-बिस्मिल
साज़ ख़ुद अपने मुग़न्नी को गुनहगार करें
अहमद फ़राज़
नज़्म
हम कहाँ जाएँ कहें किस से कि नादार हैं हम
किस को समझाएँ ग़ुलामी के गुनहगार हैं हम
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जिस तसव्वुर से चराग़ाँ है सर-ए-जादा-ए-ज़ीस्त
उस तसव्वुर की हज़ीमत का गुनहगार बनूँ