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नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लौह भी तू, क़लम भी तू, तेरा वजूद अल-किताब!
गुम्बद-ए-आबगीना-रंग तेरे मुहीत में हबाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लहू के गुम्बद में कोई दर है कि वा हुआ है
ये छूटती नब्ज़, रुकती धड़कन, ये हिचकियाँ सी