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नज़्म
हयात-ए-ना-पाएदार के मरसिए सुनाते
मिरे बदन की अमीक़ सर्दी को सर्द से सर्द-तर बनाते
अज़ीज़ तमन्नाई
नज़्म
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है गुल-ए-मक़्सूद से पुर गुलशन-ए-कश्मीर आज
दुश्मनी ना-इत्तिफ़ाक़ी सब्ज़ा-ए-बेगाना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
फूलों पे रक़्स और न बहारों पे रक़्स कर
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद में ख़ारों पे रक़्स कर
शकील बदायूनी
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर