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नज़्म
घुला घुला सा फ़लक है धुआँ धुआँ सी है शाम
है झुटपुटा कि कोई अज़दहा है माइल-ए-ख़्वाब
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जिस में आने की और मुझ से मिलने की घुलने की कोई इजाज़त किसी को नहीं है
तुम्हें भी नहीं है