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नज़्म
बैठे नज़र आते थे हम तुम चंदा की रुपहली कश्ती में
जब चाँदनी रातों में हम तुम गंगा के किनारे होते थे
नज़ीर बनारसी
नज़्म
क्यूँ न लीडर बन के सारी क़ौम को बहकाऊँ मैं
जब नहीं धंदा तो चंदा ही करूँ और खाऊँ मैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जीवन के रस्ते पर बिखरे काँटे सौ सौ डंक उठाए
नफ़रत की आँधी से धुँदले पड़ गए चंदा तारे
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
चंदा मामूँ चंदा मामूँ कहते कहते मुँह सूखे
फिर भी अपने पास न आए ज़िद्दी और हटीला चाँद