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नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कुछ कहना है और कुछ न कहे चले जाना ये कब तक चलेगा
तुम्हारा हम पर यूँ मर मर के जिए जाना ऐसा कब तक चलेगा
गीतांजली गीत
नज़्म
घोड़ा बन कर कौन चलेगा पीठ पे कौन बिठाएगा
घोड़ा बनना क्या मुश्किल है हम ख़ुद ही बन जाएँगे