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नज़्म
ज़िंदगी राहत-ए-जाँ दर्द दिल-ए-ज़ार भी है
बाँझ खेती भी है और किश्त-ए-गुहर-बार भी है
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
और अब चर्चे हैं जिस की शोख़ी-ए-गुफ़्तार के
बे-बहा मोती हैं जिस की चश्म-ए-गौहर-बार के
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब्र-ए-गौहर-बार बन कर हिन्द में आया था तू
अहल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सुदर्शन कुमार वुग्गल
नज़्म
अब्र-ए-नैसाँ का ख़वास उन की नसीहत में था
लब-ए-शीरीं से गुहर-बार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़्स अंगड़ाइयाँ लेता है तिरी बाँहों में
हैरत-आसार है क्यूँ चश्म-ए-फ़ुसूँ-बार तिरी
सैफ़ुद्दीन सैफ़
नज़्म
रक़्स अंगड़ाइयाँ लेता है तिरी बाँहों में
हैरत-आसार है क्यों चश्म-ए-फ़ुसूँ-बार तिरी
सैफ़ुद्दीन सैफ़
नज़्म
तबस्सुम की हवस हो बर्क़ के आसार पैदा कर
जो गर ये आरज़ू हो चश्म-ए-दरिया-बार पैदा कर