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नज़्म
तो बस इक तीन लफ़्ज़ी कलिमा कहना है मुझे तुम से
सुनो अल्फ़ाज़ की दुनिया से कैसी चश्म-पोशी ये
क़मर जहाँ नसीर
नज़्म
मैं तिरे शहर में फिरता ही रहा सरगर्दां
शाह-राहों के हर इक मोड़ पे हैराँ हैराँ
मुसव्विर सब्ज़वारी
नज़्म
सर-चश्मा-ए-अख़लाक़ वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश
ऐ मशरिक़-ए-इशराक़-ए-सफ़ा अब्र-ए-ख़ता-पोश