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नज़्म
ये इस्तिग़्ना है पानी में निगूँ रखता है साग़र को
तुझे भी चाहिए मिस्ल-ए-हबाब-ए-आबजू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन
जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब मुझे तेरी मौजूदगी चाहिए
अपने साटन में सहमे हुए सुर्ख़ पैरों को अब मेरे हाथों पे रख
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
रौशनी चाहिए، चाँदनी चाहिए، ज़िंदगी चाहिए
रौशनी प्यार की, चाँदनी यार की, ज़िंदगी दार की