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नज़्म
चिल्ला ग़म ठोंक उछलता हो तब देख बहारें जाड़े की
तन ठोकर मार पछाड़ा हो और दिल से होती हो कुश्ती सी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
छुप गया फिर वो भी जल्दी जल्वा दिखलाने के बा'द
हम ने चिल्ला कर कहा मस्जिद से घर आने के बा'द
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
और तुम मेरी कला के मक्र से घबरा उठोगी,
बीच सागर रो पड़ोगी ख़ुद-बख़ुद चिल्ला उठोगी
सलाम मछली शहरी
नज़्म
बर्ग-ए-गुल को रौंद डाला जब ख़िराम-ए-नाज़ से
बुलबुलें चिल्ला उठीं फ़रियाद है फ़रियाद है