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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
छुपा कर आस्तीं में बिजलियाँ रक्खी हैं गर्दूं ने
अनादिल बाग़ के ग़ाफ़िल न बैठें आशियानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मौज के दामन में फिर उस को छुपा देती है ये
कितनी बेदर्दी से नक़्श अपना मिटा देती है ये
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं जिस के आँचलों में मुँह छुपा के रो न सका
वो माँ कि घुटनों से जिस के कभी लिपट न सका