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नज़्म
अदू जिस का ख़राब-ए-ग़म शिकार-ए-ना-मुरादी था
हर इक साहिल-नशीं जाँ-सोज़ तूफ़ानों का आदी था
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
क़वी होता है जज़्ब-ए-जुस्तुजू हर ना-मुरादी से
ब-ज़ाहिर सई-ए-पैहम राएगाँ मालूम होती है
नजमा तसद्दुक़
नज़्म
अगर किसी पयम्बर-ए-अज़ीम की नज़र उठी
निगाह बाज़गश्त-ए-ना-मुराद की शिकस्तगी के वार से
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
जब तिरे दामन में पलती थी वो जान-ए-ना-तवाँ
बात से अच्छी तरह महरम न थी जिस की ज़बाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बयाँ हो ग़म का फ़साना दिल-ए-तपाँ से कहाँ
ये बार उट्ठेगा मिरी जान-ए-ना-तवाँ से कहाँ