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नज़्म
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादा
उसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
जौन एलिया
नज़्म
दूर ही से ऐसे इल्म-ए-जहल-पर्वर को सलाम
हुस्न-ए-निस्वाँ को बना देता हो जो जागीर-ए-आम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़ना कर देंगे अहल-ए-जब्र-ओ-इस्तिब्दाद की हस्ती
ज़मीं में दफ़्न रस्म-ए-जहल-ओ-वहशत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बनाम-ए-इल्म-ओ-अदब जो पाया
अबदुल्लाह-इब्न-ए-उबय की दौलत अबू-जहल की वो ख़ासियत है