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नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
दर्द-ओ-ग़म हल्क़ा-ए-ज़ंजीर दर-ओ-बाम-ए-क़फ़स
कल जो चुभते थे वही ख़ार सदा देते हैं
अयाज़ बिलग्रामी
नज़्म
असीरान-ए-क़फ़स से काश ये सय्याद कह देता
रहो आज़ाद हो कर हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
है मिज़ाज उस वक़्त कुछ बिगड़ा हुआ सय्याद का
ऐ असीरान-ए-क़फ़स मौक़ा नहीं फ़रियाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
रहने में कुछ है 'कैफ़ी' बर्बाद हो के रहना
क्या गोशा-ए-क़फ़स में नाशाद हो के रहना
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
अहल-ए-क़फ़स की सुब्ह-ए-चमन में खुलेगी आँख
बाद-ए-सबा से वअदा-ओ-पैमाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क़ैद-ए-क़फ़स में हसरत-ए-परवाज़ क्यूँ रहे
सय्याद जो उड़ा दे न है बाल-ओ-पर कहीं
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
कोई क्यों हम-जिंस के ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद पर कुढ़े
वर्ना रूदाद-ए-क़फ़स हम को सिरे से याद है
मंझू बेगम लखनवी
नज़्म
ये तंगन-ए-क़फ़स ये सियासत-ए-सय्याद
ये आब-ओ-गिल के तलातुम यह वुसअ'त-ए-बर्बाद