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नज़्म
जब मेरा जी चाहे मैं जादू के खेल दिखा सकता हूँ
आँधी बन कर चल सकता हूँ बादल बन कर छा सकता हूँ
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
दस्त-ए-जादू-गर से जैसे फूट निकले हों तिलिस्म
इश्क़-ए-हासिल-ख़ेज़ से या ज़ोर-ए-पैदाई से जैसे ना-गहाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
एक दिन उस बस्ती में इक जादू-गर आया
और उस ने ऐसा मंतर फूँका कि सारी बस्ती पत्थर हो गई