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नज़्म
दरस-ए-सुकून-ओ-सब्र ब-ईं एहतिमाम-ए-नाज़
निश्तर-ज़नी-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
छलकते हैं जिगर के ख़ून से आँखों के पैमाने
सुकून-ओ-सब्र के जाम-ए-कुहन की आज़माइश है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
तेरे दीवाने रहे हैं कितने ही अहल-ए-ख़िरद
तेरे ज़ानू पर सुकूँ की नींद सोए नेक-ओ-बद
मोअज़्ज़म अली खां
नज़्म
दी है हमें ख़ुदा ने रोज़े की ऐसी ने'मत
अहल-ए-ख़िरद समझते हैं इस की क़द्र-ओ-क़ीमत
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शौकत-ए-किसरा ओ शान-ए-जम तो दरबारों में है
जिंस-ए-नायाब-ए-वफ़ा भी तेरे बाज़ारों में है
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
तेरी जिंस-ए-इल्म-परवर के ख़रीदारों में थे
जान-ओ-दिल से तेरे जल्वों के परस्तारों में थे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुहीब सायों में पल रहा हूँ
कि लाख रंज-ओ-अलम में महसूर एक जिंस-ए-गिराँ है इक़रार जिस का