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नज़्म
ऐ मिरे नूर-ए-नज़र लख़्त-ए-जिगर जान-ए-सुकूँ
नींद आना तुझे दुश्वार नहीं है सो जा
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
है कौन तुम में ऐसा छाती से जो लगा ले
मुँह तक रहा है सब का लख़्त-ए-जिगर हमारा
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
आसमाँ काँपता है नाम से जिन के अब तक
आज फिर क़ौम में वो लख़्त-ए-जिगर पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
जो शीर-ख़ार हैं हिन्दोस्ताँ के लख़्त-ए-जिगर
ये माँ के दूध से लिक्खा है उन के सीने पर