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नज़्म
जुनून-ए-शौक़ के दम से है इज़्ज़-ओ-शान-ए-हयात
यही है रूह-ए-मोहब्बत यही है जान-ए-हयात
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
मिरे हमदम जुनून-ए-शौक़ का इज़हार करने दे
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जुनून-ए-इब्तिदा-ए-इश्क़ ने करवट सी ली दिल में
पस-अज़ मुद्दत ये ले के आ गई फिर अपने मुहमल में
अख़्तर शीरानी
नज़्म
अलावों के क़रीं अक्सर जुनून-ए-ख़ुद-नुमाई में
किसी इक गीत में इक दास्ताँ में ढलने लगते हैं
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
अलावों के क़रीं अक्सर जुनून-ए-ख़ुद-नुमाई में
किसी इक गीत में इक दास्ताँ में ढलने लगते हैं