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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यूँ राग सा छेड़े रहता था बहता हुआ पानी का धारा
जैसे कोई जोगी रात गए गाता हो बजा कर इक तारा
नज़ीर बनारसी
नज़्म
बच्चो तुम ने बापू की तस्वीर तो देखी होगी
एक नज़र में समझोगे तुम उन को बूढ़ा जोगी