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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ुद रूठें ख़ुद मन जाएँ फिर हम-जोली बन जाएँ
झगड़ा जिस के सात करें अगले ही पल फिर बात करें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक ही चीख़ ने उस की पल में सास बहू का झगड़ा चुकाया
दौड़ी बहू मिरे लाल हुआ क्या सास पुकारी हाए ख़ुदाया