aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "डर"
जो भरोसा था उसे क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर थाहै तुम्हें मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था
मुझे अब डर नहीं लगताकिसी को आज़माने से
इस क़ैद का इलाही दुखड़ा किसे सुनाऊँडर है यहीं क़फ़स में मैं ग़म से मर न जाऊँ
अपने चेहरे आईनों मेंजब देखोगे डर जाओगे
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मिरेऔर तू मुट्ठियाँ भर भर के नमक लाई थी
तू मेरा हैलेकिन तेरे सपनों में भी आते हुए ये डर लगता है
''मुफ़्त'' सुन कर और डर जाते हैं लोगऔर चुपके से सरक जाते हैं लोग
मुझे ये डर था कि तुम भी कहीं वही तो नहींजो जिस्म पर ही तमन्ना के दाग़ छोड़ते हैं
ख़ूगर-ए-परवाज़ को परवाज़ में डर कुछ नहींमौत इस गुलशन में जुज़ संजीदन-ए-पर कुछ नहीं
डर से लर्ज़ां हूँ कहीं ऐसा न होरक़्स-गह के चोर दरवाज़े से आ कर ज़िंदगी
इस डर से या'नी रात ओ धन्ना कहीं न देतोहमत ये आशिक़ों को लगाती है मुफ़्लिसी
कुछ तिरी अज़्मतों का डर भी थाकुछ ख़यालात थे अजीब मिरे
न साँसों की आवाज़डरा हुआ है वो
लरज़ता था डर से मिरा बाल बालक़दम का था दहशत से उठना मुहाल
धज्जियाँ दूर तक बट गईंमैं ने डर के लगा दी कुएँ में छलांग
मुझे ये डर है किसी रोज़ तेरे कर्ब समेतमैं ख़ुद भी दुख के समुंदर में डूब जाऊँगा
मुझे डर लग रहा है आजमुझ को अपने बिस्तर पर सुला लो
डरी हुई कोई बेल थी जैसेपूरे घर पे चढ़ी नहीं
मैं तो डर जाता हूँ लेकिनकमरे की दीवारें हँसने लगती हैं
तुम डर में बच्चे जन्ती हो इसी लिए आज तुम्हारी कोई नस्ल नहींतुम जिस्म के एक बंद से पुकारी जाती हो
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