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नज़्म
तअस्सुब छोड़ नादाँ दहर के आईना-ख़ाने में
ये तस्वीरें हैं तेरी जिन को समझा है बुरा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये मेरी मोहब्बत का गहरा तअ'स्सुब भी हो सकता है
पर ये आफ़ाक़ियत काएनाती मोहब्बत का रद्द-ए-अमल है
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अलम-ओ-रंज का दुख-दर्द का एहसास न हो
और तअ'स्सुब की किसी क़ौम में बू-बास न हो
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
तू ने तुर्कों को दिखाई है सिरात-ए-मुस्तक़ीम
फूँक डाले हैं तअ'स्सुब के हिजाबात-ए-क़दीम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये सब जानता है हमारी शुजाअत की परवाज़ क्या है
हमारी जवाँ-मर्दी इक सूबा-जाती तअस्सुब से
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मगर मैं कह नहीं सकता अक़ीदत बाज़ रखती है
तअ'स्सुब ख़ुद-पसंदी बुग़्ज़ से किब्र-ओ-हसद से