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नज़्म
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
जुनूँ-सामाँ नज़ारों के तक़ाज़े अब भी होते हैं
तमन्ना अब भी होती है इरादे अब भी होते हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
मगर अपनाइयत के ताने-बाने बुन रहा हूँ मैं
मिरी ख़ामोश नज़रों के तक़ाज़े तुम पे वाज़ेह हैं
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
इश्क़ बेताब मगर हुस्न को पाबंदी-ए-वज़्अ
मेरे वारफ़्ता तक़ाज़े थे मगर तुम मजबूर