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नज़्म
बिजली की मानूस कड़क शह-ज़ोर गरज ये बादल की
अब के हम ने कितनी धूपें इस मौसम की राह तकी
तरन्नुम रियाज़
नज़्म
आ गया दिल में तिरे 'मीर-तक़ी-मीर' का सोज़
दे गया दर्द की लज़्ज़त तुझे 'दिल-गीर' का सोज़
हबीब जौनपुरी
नज़्म
त'अल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़