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नज़्म
ख़बर देती है तहरीक-ए-हवा तबदील-ए-मौसम की
खिलेंगे और ही गुल ज़मज़मे बुलबुल के कम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ये लुत्फ़ देख देख कर ज़बाँ पे बार बार है
ये मौसम-ए-बहार है ये मौसम-ए-बहार है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ये लोग वो हैं कि जिन के यादों के कैनवस पर
विसाल-ए-मौसम की एक मुबहम लकीर भी तो नहीं बनी है
अंजुम ख़लीक़
नज़्म
ख़ुदा-ए-मौसम ने हर्बा-हा-ए-बहार से मुझ को आज़माया
ख़िज़ाँ की सफ़्फ़ाक उँगलियों का हदफ़ बनाया