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नज़्म
ख़ुनुक वादी में तरन्नुम हो रमीदा जैसे
हर तरफ़ हुस्न-ए-तरब-ख़ेज़ का 'आलम था मगर
अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल
नज़्म
यहाँ ख़्वाब-ए-सुकूँ-परवर में भी बेदारियाँ देखीं
यहाँ हर होशियारी में नई सरशारियाँ देखीं