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नज़्म
तू राज़-ए-कुन-फ़काँ है अपनी आँखों पर अयाँ हो जा
ख़ुदी का राज़-दाँ हो जा ख़ुदा का तर्जुमाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मख़मूर सईदी
नज़्म
किसी सहीफ़े की तफ़्सीर तर्जुमा तिरा जिस्म
किसी क़दीम क़लम से लिखा हुआ तिरा इस्म
सादिया सफ़दर सादी
नज़्म
कभी जब लफ़्ज़-ए-आज़ादी का सच्चा तर्जुमाँ होगा
तो फिर ये हिन्द ख़्वाबों का मिरे हिन्दोस्ताँ होगा
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मैं ने जब पूछा कि रौशन चाँद से बढ़ कर है क्या
नाज़ से बोला वो बुत चेहरा मिरा चेहरा मिरा
सदा अम्बालवी
नज़्म
फिर यही तारीख़ हिन्दी तर्जुमा हो कर छपी
ग़ैर मुल्कों में भी इस तालीफ़ का है एहतिराम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ज़िंदा हस्ती की ख़बर देती है रफ़्तार-ए-नफ़स
बू-ए-गुल को ज़िंदगी का तर्जुमाँ पाता हूँ मैं