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नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
जो चलता है तो क़दमों की कोई आहट नहीं होती
तलाश-ए-फ़र्क़-ए-नेक-ओ-बद की ख़्वाहिश को लिए दिल में
फ़ैसल हाशमी
नज़्म
भर दिया मैं ने अयाग़-ए-लाला में ख़ून-ए-बहार
जाबिर-ओ-सरकश अनासिर पर है मेरा इख़्तियार