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नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो बोध और कृष्न का जा-नशीं हमा-तन अमल हमा-तन यक़ीं
वो तबस्सुम-ए-सहर-आफ़रीं कि चमन लबों से खिला दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
ख़िर्मन-ए-सब्र-ओ-सुकूँ ख़ाक न हो क्यों जल कर
बिजलियाँ कौंद रही हैं मिरे काशाने में
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
दिलों के अंदर छुपे बुतों को मिटा रहे हो
दिलों के अंदर छुपे दरिंदों को संग-ए-सब्र-ओ-ग़िना से
वहीद क़ुरैशी
नज़्म
मौसम-ए-सर्मा में ऐ सरमाया-ए-सब्र-ओ-शकेब
बे-सदा तेरा पस-ए-पर्दा था साज़-ए-दिल-फ़रेब
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
तेरी मौजों में है ये किस की सदा-ए-दिल-फ़रेब
गा रही है कौन ये ग़ारतगर-ए-सब्र-ओ-शकेब