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नज़्म
शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर
ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ीस्त की हर एक ने'मत मुल्क पर क़ुर्बान थी
रहनुमा के इक इशारे पर तसद्दुक़ जान थी
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मौजज़न है जिस में ऐ चर्ख़ इक सुरूर-ए-सरमदी
मेरी दुनिया है तसद्दुक़ इस छलकते जाम पर
चरख़ चिन्योटी
नज़्म
नक़्काश-ए-अज़ल मैं तिरी जिद्दत के तसद्दुक़
हर नक़्श से हर नक़्श जुदा देख रहा हूँ
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
ख़राबी उस के पर्दों में निहाँ मालूम होती है
मिरी हस्ती मुझी को दास्ताँ मालूम होती है
नजमा तसद्दुक़
नज़्म
वो क़ुदरत थी ख़ुदा की जिस पे ख़ुद क़ुदरत तसद्दुक़ थी
वो बरकत थी यक़ीनन जिस पे हर बरकत तसद्दुक़ थी