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नज़्म
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जहाँ इन बे-नवाओं का भी हमदर्द आसमाँ होता
जहाँ तस्कीन-ए-दिल होती जहाँ आराम-ए-जाँ होता
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
रख़्शाँ है हुर्रियत का ज़ेबा-निगार दिल-जू
तस्कीन-ए-क़ल्ब मुस्लिम आराम-ए-जान-ए-हिन्दू
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
कभी कभी दिल ये सोचता है
न जाने हम बे-यक़ीन लोगों को नाम-ए-हैदर से रब्त क्यूँ है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दिल के ऐवाँ में लिए गुल-शुदा शम्ओं की क़तार
नूर-ए-ख़ुर्शीद से सहमे हुए उकताए हुए