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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसा तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरसती है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
डस लेगी जान ओ दिल को कुछ ऐसे कि जान ओ दिल
ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कहते थे कि पिन्हाँ है तसव्वुफ़ में शरीअत
जिस तरह कि अल्फ़ाज़ में मुज़्मर हों मआनी