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नज़्म
ये हाथ न हूँ तो मोहमल सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
ये हाथ न हों तो बे-मा'नी इंसानों की तक़रीरें हैं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तेरे जिस्म के पुर-असरार ज़मानों की तहरीरें पढ़ लेता था
और फिर अच्छी अच्छी नज़्में घड़ लेता था
सरमद सहबाई
नज़्म
वक़्त के बाब-ए-नदामत में निहाँ तहरीरें
उन को पढ़ लेते तो शायद न यूँ हैराँ होते
मोहम्मद अफ़सर साजिद
नज़्म
कौन पढ़ पाएगा तहरीर-ए-जबीन-ए-शफ़्फ़ाफ़
कस को मल सकता है बे-वज्ह तग़ाफ़ुल का जवाज़
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
रात आती थी सुनाने सोज़ का पैग़ाम जब
मश्क़-ए-तहरीर-ए-जुनूँ बनता था तेरा नाम जब