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नज़्म
रस्ते में शहर की रौनक़ है इक ताँगा है दो कारें हैं
बच्चे मकतब को जाते हैं और तांगों की क्या बात कहूँ
मीराजी
नज़्म
है ज़रूरत उस की अब ताँगा चलाने के लिए
पालते हैं अब उसे रोज़ी कमाने के लिए
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ की तरह देहली की सड़कें हैं दराज़
और तांगा हाँकने वालों पे ज़ाहिर है ये राज़
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तिरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था