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नज़्म
मोहब्बत भरा ख़त मिरे और तिरे दरमियाँ तीर है
मैं लिक्खूँ और लिखता रहूँ ता-क़यामत
अली मोहम्मद फ़र्शी
नज़्म
कहीं ग़म ता-क़यामत दोस्त कर देता है अपनों को
कहीं ख़ुशियाँ लुटाने से भी साहब कुछ नहीं होता
अदील ज़ैदी
नज़्म
कहीं ग़म ता-क़यामत दोस्त कर देता है अपनों को
कहीं ख़ुशियाँ लुटाने से भी साहब कुछ नहीं होता
आदिल ज़ैदी
नज़्म
हड़ताल करने से न टलो मैं नशे में हूँ
ऐ ग़ैर-मुलकियों की कलो मैं नशे में हूँ