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नज़्म
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
तेरे अबरू से सिवा वो निगह-ए-तिश्ना-ए-ख़ूँ
तीर जब निकला कमाँ से तो कमाँ कुछ भी नहीं
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
संग-ए-तुर्बत है मिरा गिरवीदा-ए-तक़रीर देख
चश्म-ए-बातिन से ज़रा इस लौह की तहरीर देख
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आश्ना-ए-दर्द हो पहलू कलेजा दाग़-दार
और जिगर को तिश्ना-ए-आज़ार होना चाहिए
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
आज तक तिश्ना-ए-ता'बीर रहा ख़्वाब-ए-हयात
काश होता न मिरे ज़ौक़-ए-फ़रावाँ में सबात