aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "दर्दों"
दूर उफ़ुक़ तक घटती बढ़ती उठती रहती हैकोहर की सूरत बे-रौनक़ दर्दों की गदली लहर
मिरे सारे दर्दों का दरमाँ भी हो तुममगर ये भी सच है
कितने दर्दों के मिस्तर ज़मज़मेकितने अंधे ज्ञानी बहरे फ़लयसूफ़
मिरे देस की उन ज़मीनों के बेटे जहाँ सिर्फ़ बे-बर्ग पत्थर हैं सदियों से तन्हाजहाँ सिर्फ़ बे-मेहर मौसम हैं और एक दर्दों का सैलाब है उम्र-पैमा
लेकिन मसनूई दर्दों से कुछ नहीं होताप्यारे दोस्त
मैं तेरे दर्दों का मारातेरी ही सूरत में भी
जिन से दर्दों की बे-कल रवानी छलकती हुई दिख रही हो बताओ भलातुम बताओ
आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखीयास-ओ-हिरमान के दुख-दर्द के मअ'नी सीखे
है बजा शेवा-ए-तस्लीम में मशहूर हैं हमक़िस्सा-ए-दर्द सुनाते हैं कि मजबूर हैं हम
फिर भी माज़ी का ख़याल आता है गाहे-गाहेमुद्दतें दर्द की लौ कम तो नहीं कर सकतीं
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूरनशात-ए-वस्ल हलाल ओ अज़ाब-ए-हिज्र हराम
जिन की राह-ए-तलब से हमारे क़दममुख़्तसर कर चले दर्द के फ़ासले
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैंलेकिन अब ज़ुल्म की मीआद के दिन थोड़े हैं
बे-दर्द दिलों को क्या है ख़बर जो प्यार यहाँ आपस में हैहै बेबसी ज़हर और प्यार है रस ये ज़हर छुपा इस रस में है
'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ मेंमालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
दरिंदों चरिन्दों पे क़ाबू दियातुझे भाई दे कर के बाज़ू दिया
आँखों के दरीचों पे किसी हुस्न की चिलमनऔर दिल की पनाहों में किसी दर्द का डेरा
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करनादर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना
मुझे तिरे दर्द के अलावा भीऔर दुख थे ये मानता हूँ
क्यूँ दर्द के नामे लिखते लिखते रात करोजिस सात समुंदर पार की नार की बात करो
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