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नज़्म
इक जिहाद-ए-मुस्तक़िल हो या गुरेज़-ए-मुस्तक़िल
अपनी नादारी के हाथों आदमी है मुन्फ़इल
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
कि मोहब्बत का मरीज़-ए-मुस्तक़िल हूँ 'मज़हरी'
दोस्ती क्या दुश्मनी से भी मोहब्बत मैं ने की
जमील मज़हरी
नज़्म
वो सुकून-ए-मुस्तक़िल है ये है पैहम इज़्तिराब
ज़िंदगानी का गिला या मौत का शिकवा करूँ
जगदीश सहाय सक्सेना
नज़्म
क्यूँ निगाहों पर मिरी छाए हैं आँसू के नक़ाब
इस सवाल-ए-मुस्तक़िल का क्यूँ नहीं मिलता जवाब
मीराजी
नज़्म
मैं तुझ से दूर सही लेकिन ऐ रफ़ीक़ मिरे
तिरी वफ़ा को मिरी जेहद-ए-मुस्तक़िल का सलाम
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
साज़ बजते हैं मोहब्बत के दरून-ए-महफ़िल
तू दर-ए-यार के दरबाँ की शक़ावत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात
अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या