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नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
तुम चाहो तो बस्ती छोड़े तुम चाहो तो दश्त बसाए
ऐ मतवालो नाक़ों वालो वर्ना इक दिन ये होगा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मेरी जेबों में तेरे सिक्के खनक रहे हैं
नवा-ए-गुमराह-ए-दश्त-ए-शब के नुजूम तेरी हथेलियों पर चहक रहे हैं
जावेद अनवर
नज़्म
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब