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नज़्म
इक लम्बा चौड़ा उजला दस्तर-ख़्वान बिछाया जाएगा
डोंगों का और प्लेटों का इक ढेर लगाया जाएगा
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
ग़ुलामान-ए-अज़ल या'नी ये झूटे पेशवा-ए-दीं
लगा रहता है हर दम जिन के दस्तर-ख़्वान को ख़तरा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
में ख़ुद को उन के दस्तर-ख़्वानों पर मौजूद पाता था
सकत बाक़ी नहीं है उन लबों में आज इतनी भी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
सुब्ह सुब्ह इक ख़्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला' देखा
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं
गुलज़ार
नज़्म
रंग-बिरंगे शीशों वाली खिड़की बंद पड़ी है अब
वो लड़की जो इस में खड़ी लोगों को ख़्वाब दिखाती थी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
इक ख़्वाब की आहट से यूँ गूँज उठीं गलियाँ
अम्बर पे खिले तारे बाग़ों में हँसें कलियाँ