इक बक्स कहीं से लाएँगे रोग़न से उसे चमकाएँगे
इक डब्बे में बासी फुलकों का इक अम्बार लगाएँगे
लड़कों से कहेंगे आओ ग्रामोफोन फ़ोन तुम्हें सुनवाएँगे
संदूक़ और डब्बा खोल के फिर नाचेंगे शोर मचाएँगे
आज अपने हर हम-जोली को हम उल्लू ख़ूब बनाएँगे
अमजद चूनी और तुलसी को दावत पे बुलाया जाएगा
इक लम्बा चौड़ा उजला दस्तर-ख़्वान बिछाया जाएगा
डोंगों का और प्लेटों का इक ढेर लगाया जाएगा
जब ढकने डोंगों से उट्ठे उन में मेंडक ट्राएँगे
आज अपने हर हम-जोली को हम उल्लू ख़ूब बनाएँगे
टोपी में घंटी लटका कर हम हौले हौले झूमेंगे
सब बच्चे मारे ख़ौफ़ के खाना पीना भूलेंगे
हम भूत आया चिल्लाएँगे वो ज़ोर से आँखें मूँदेंगे
जब रोने पर आएँगे तब घंटी का राज़ बताएँगे
आज अपने हर हम-जोली को हम उल्लू ख़ूब बनाएँगे
भय्या से कहेंगे जल्दी बाहर चलिएगा तार आया है
शायद सरकार ने नौ सौ पर फ़ौरन शिमले बुलवाया है
अम्मी ने कहा जब कुछ भी नहीं इक बिल्ला चूहा लाया है
तो हम खाने की मेज़ के नीचे चुपके से छुप जाएँगे
आज अपने हर हम-जोली को हम उल्लू ख़ूब बनाएँगे
स्रोत:
Khilauna,New Delhi (Pg. 53)
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- प्रकाशक: मोहम्मद यूनुस देहलवी
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