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नज़्म
इस इश्क़ न उस इश्क़ पे नादिम है मगर दिल
हर दाग़ है इस दिल में ब-जुज़-दाग़-ए-नदामत
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ दिल पहले भी तन्हा थे, ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं
और उन ज़ख़्मों और दाग़ों से अब अपनी बातें होती हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
मुझे ऐ हम-नशीं रहने दे शग़्ल-ए-सीना-कावी में
कि मैं दाग़-ए-मोहब्बत को नुमायाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये धूप ज़र्द ज़र्द सी ये चाँदनी धुआँ धुआँ
ये तलअतें बुझी बुझी, ये दाग़ दाग़ कहकशाँ