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नज़्म
ये संग-ओ-ख़िश्त नहीं दिल है दिल में धड़कन है
न छेड़ो इस को कहीं दाग़-दार हो जाए
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
आश्ना-ए-दर्द हो पहलू कलेजा दाग़-दार
और जिगर को तिश्ना-ए-आज़ार होना चाहिए