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नज़्म
गरचे है तालीम और रटने में बोद-उल-मशरिक़ैन
सोचते हैं वो कि अच्छा ज़ेहन है ख़ालिक़ की देन
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बुग़्ज़-ओ-कीना और हसद शैतानियत की देन है
हम उसे होली की अग्नी में जला कर फूँक दें
हबीब अहमद अंजुम दतियावी
नज़्म
सदा अम्बालवी
नज़्म
रिश्ता-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तोड़ न देना साथी
वैसे मैं अश्कों से बढ़ कर तुझे देता क्या था
सलाहुद्दीन नय्यर
नज़्म
कौन अंधेरे का है ख़ालिक़ किस ने दिन रौशन किया
रोज़-ओ-शब किस ने बनाए देन है किस की हवा
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों