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नज़्म
ये खेप जो तू ने लादी है सब हिस्सों में बट जावेगी
धी पूत जँवाई बेटा क्या बंजारन पास न आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
कोई बिरहन किसी की याद में आँसू बहाती हो
अगर ऐसे में तेरा दिल धड़क जाए तो आ जाना
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
जिसे दुश्मनी पे ग़ुरूर था उसे दोस्ती से शिकस्त दी
जो धड़क रहे थे अलग अलग उन्हें दो दिलों को मिला दिया
नुशूर वाहिदी
नज़्म
मुख़्तलिफ़ पेच-दर-पेच राहों से गुज़री चली जा रही हैं
सैकड़ों सर कटे धड़ बहुत रास्तों पर पड़े हैं