aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नख़्ल-ए-मसाफ़त"
नख़्ल-ए-नूर-ओ-समर की ये जल्वागरी देख करमुश्क पूरी धुनों पर थिरकती रही
उसी दास्ताँ पे निसार जिसका मैं नख़्ल-ए-साया-तराज़ हूँ
नख़्ल-ए-उमीद-ए-बेहतरीहर फ़स्ल में हो बारवर
कौन कर सकता है इस नख़्ल-ए-कुहन को सर-निगूँपहला मुशीर
अगर वो नख़्ल-ए-फ़लक से उड़ करतुम्हारे क़दमों में आ गिरे
सहर था जिस की बातों मेंनख़्ल-ए-समर था
यूँ सरशार हुआ जाता हैकपड़ा सूरत नख़्ल-ए-मरियम
सहर के आइने सेनख़्ल-ए-हैरत पर चहकती बुलबुलों से
नख़्ल-ए-एहसास क्यों नहीं मिलताअपने यज़्दाँ से इक सवाल मिरा
ये मसाफ़तये नौ साल की बे-महाबा मसाफ़त
दिल से भुलाया ज़न ओ फ़रज़ंद कोलग गया घुन नख़्ल-ए-बरोमँद को
देख क्या नहीं हूँ मैंनख़्ल-ए-आरज़ू समझ अस्ल-ए-जुस्तुजू समझ
बनती जाती हूँ नख़्ल-ए-सहराईतू ने चाहा तो मैं ने मान लिया
नख़्ल-ए-नुमू की शाख़ पे जिस दमनम की आँच की सरशारी में
नख़्ल-ए-दार पे बौर आने का मौसम भी थादिल्ली की गलियों में उस दिन
नख़्ल-ए-इम्काँ को भस्म करती हुई आग उठीआग ज़ोलीदा ख़यालों को जलाती हुई आग
कामराँ कामराँ ज़ोम-ए-बातिल में गुमनख़्ल-ए-तख़्ईल के पत्ते पत्ते का दिल
वर्ना इस नख़्ल-ए-ख़मोशी के घने साए मेंअपनी पहचान बना लेना बहुत मुश्किल है
अब आबलों में सकत नहींये मसाफ़त भी राएगाँ न जाए कहीं
रास्ते में कोई मील पत्थर नहींऔर हवा-ए-मसाफ़त गुज़रते हुए
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